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KaviKumar Sumit is an indian Hindi poet, author and comedian. He recites his poems in various stage shows in special occasions. MP government in year 2015 awarded him as Bal Pratibha Samman 2015, for his service in creative writing field. Now singing songs and hindi poems with a melodious voice is his passion.
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Motivational Hindi Kavita | पाशिका (भाग-1) | कविकुमार सुमित
पाशिका (भाग-1)
मेरे पीछे कदम बहुत हैं,
कुछ छोटे, कुछ नौसिखिये,
अभी चला हूँ आगे-आगे,
तनिक ठहरकर फिर चलिए |
मेरे पैरों में कुछ कांटे,
कुछ शूल हैं, उनकी खातिर,
हल्की बारिस की बूंदों से,
उगे हुए कुछ घांस हैं फिर |
अचरज से तुमने देखा, जो
नूर मेरे गालों वाली,
इसको पाने तय कि मैंने,
राह रात काली-काली |
बातों कि शीतलता पीछे,
ठोकर और अपमान छिपे,
कर्म पाशिका चढ़ते-चढ़ते,
तुम जैसे सौ लाख बिके |
अकड़ थी ऐसी देश हरा दूं,
रीढ़ ने बोला थोडा झुक,
मौसम अभी न आया तेरा,
हवा खाद पानी तक रुक |
कृत्य पाशिका चढ़कर मानुष,
वीर या कायर बनता है,
गरल युद्ध का पीते-पीते,
यश तमगों को चुनता है |
नियति नहीं निर्धारित करती,
किस आसन पर बैठेगा ?
घाव वक्ष के बतलाते हैं,
सिंहासन पर बैठेगा ?
पाषाणों को रगड़-रगड़ कर,
अग्नि ह्रदय में उतरी है,
क्षुब्ध आग की ही लपटों से,
चमक धरा में बिखरी है |
वीर्य नहीं तय करता,
ना गर्भाशय तय करता,
कण्ठों में उतरा विष निश्चित,
जीवन आशय तय करता |
कर्म पाशिका खड़ी हुई है,
आओ गर्दन लेकर,
आज पुनः होगी वह शानी,
तेरा शोणित पीकर |
लोग कतारों में आएँगे,
लेकर मालाएँ ताज़ी,
तेरा श्रेय सभी का होगा,
लगा सुखों कि बाज़ी |
तिनका-तिनका नाच उठेगा,
स्वागत तेरा होगा,
सूद सहित सुख लौटेंगे,
यदि तूने तप भोगा |
ठण्डा लोहा पड़ी चोट, और
दावानल से डरता है,
अभिकल्पन कि पहली सीढ़ी,
पर कम्पन यदि करता है |
अहा और भी कई शब्द हैं,
जिनमे गाली शामिल है,
दिशाहीन और व्यर्थ समय कर,
बनते ख़ुद के क़ातिल हैं |
पूर्वनियोजित न प्रस्तावित,
कोई घटना होती है,
शीश तभी योद्धा का कटता,
आँखे खुलकर सोती हैं |
खुले चक्षु में स्वप्न पधारें,
खुले नयन से सोना मत,
काटे शत्रु घरों में घुसकर,
तब नियति पर रोना मत |
आत्मदाह की कायरता कर,
वंश कलंकित मत करना,
काम पाशिका की लपटों से,
स्त्री लाज नहीं हरना |
उसी गुहा से उपजे सब हैं,
जिसकी लालच में रत है,
पावन जिभ्या स्पर्श कराना,
एकमात्र क्या यह व्रत है |
पेय मिलेंगे कई राह में,
कुछ मादक कुछ शीतल,
अंत आचरण चयन करेगा,
भायेगा जो मन तल |
कई पाशिकाओं से होकर, उनमें
चढ़कर जाना होगा,
कई मिलेंगे फंसे लूप में,
करना पार कराना होगा |
-कविकुमार सुमित
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