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Hindi Kavita | माँ धरती कह रही | KaviKumar Sumit

माँ धरती कह रही 



श्वेत शिखा पर और भी ऊपर,
सुरभित पवन है बह रही |
आओ प्यारे लगा गले लूँ,
छाँह तपन सह रही ||
माँ धरती..............

पीत खेत और बाग़ रंगीले,
मस्त हिंडोले चेहेरे पीले |
मन सिहरे मानो ये ओले,
कानन में हिरणी मचल रही ||
माँ धरती............

पात ढके और खुले लाज से,
कठफोड़वा है व्यस्त काज में |
सिन्दूरी मेरी मातु आज से,
पनघट में प्यारी भर रही ||
माँ धरती..............


स्वच्छ सुगन्धित रज है,
पतली पगडण्डी ब्रज है |
प्रीती रंग में रंगी बड़ियाँ,
बस, बंसुरिया मन हर रही ||
माँ धरती...........


मिलन प्रेम की ऋतु है आई,
बैरी कोयल चूक न पाई |
बसंती हिय चतुर चाँदनी,
नव सृजनी ध्वजिका फहर रही ||
माँ धरती............



                                -कविकुमार सुमित