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हिन्दी कविता | ऐ बिछड़ रहे लम्हे | कविकुमार सुमित

बिछड़ रहे लम्हे





ऐ बिछड़ रहे लम्हे ,
तूने क्या-क्या नही दिया मुझे,
धुप, छाँव, ख़ुशियाँ, गम,
थकान, आराम, धन, हार-जीत
नाप-तौल, दोस्त-दुश्मन सबकुछ,
सब भूल जाते हैं ,लेकिन
मैं नहीं भूलूंगा तुझे |
ऐ बिछड़ रहे लम्हे..

तूने क्या क्या नहीं जताया मुझे,
जनवरी की ठण्ड, ,मार्च की होली,
मई ली गर्मी, अगस्त की बरसात
इन सब से जो जाताना चाहता था
तू ,
अब दिसम्बर में समझ आ गया है,
मुझे |
ऐ बिछड़ रहे लम्हे..

क्या-क्या नहीं छिना तूने,
प्यार, घर, दौलत, रैंक, पद,
ईमान, ज़मीर, बच्चे, आदमी, औरत,
और पता नहीं क्या-क्या,
सब निकल देते है,
लेकिन,
मेरे दिल में ज़िन्दा रहेंगे ये |
ऐ बिछड़ रहे लम्हे...

तूने वह सबकुछ सिखाया,
जो मेरे लिए था ज़रूरी,
राजनीति, दाव, विनम्रता, सहभागिता,
रफ़्तार, तारीफ और सबसे ज़रूरी,
‘झूठ’
बाकी सब का तो पता नहीं,
इन्हें याद रखूँगा ज़हन में |
ऐ बिछड़ रहे लम्हे..

मैंने हर बार सोचा
इस बार आगे निकल जाऊंगा तुझसे,
लेकिन लम्हे तू बड़ा मायावी है,
बस एहसास कराया मुझे,
की मैं आगे हूँ,
हर बार लाखों कदम आगे था मुझसे |

ऐ बिछड़ रहे लम्हे..
ऐ बिछड़ रहे लम्हे..