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कविता | तुमने समझ लिया | कविकुमार सुमित

तुमने समझ लिया







घर क्या आ गए तुम्हारे,
तुमने तो आवारा समझ लिया |
पानी ही तो माँगा था,
तुमने बेचारा समझ लिया |

नाकाम होकर दिल की,
बातें बता दी मैंने |
तरस आ गया तुमको, ख़ुद
को मेरा सहारा समझ लिया |

मेरी ग़ैरत पर गौर करके,
नाफ़हम बता दिया |
और उसी को तुमने ,
मेरा गुज़ारा समझ लिया |

नज़ाफ़त से नज़ाकत से,
नफ्ज़ पकड़ते हो |
चश्म-ए-बद्दूर साहेब,
हमने अय्यारा समझ लिया |

                                              - कविकुमार सुमित